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________________ श्री पवजिन पञ्चकल्याणक लघु स्तवनम् ( १६६ ) श्री पाश्वजिन पंचकल्याणक लघु स्तवनम् श्री पास जिणेसर सुख करणो, प्रणमीजइ सुरपति नत चरणो। नील कमल सामल वरणो, निज सेवक सवि संकट हरणो ।। चैत्र मास वदि चउथि दिनइ, प्राणत सुरलोक थकी चवि नइ । आससेण नरपति भवनइ, अवतरियउ जिन चउदस सुपनह।२। पोष मास बदि दसमी तणइ, दिन जायउ जिण सुपुण्ण दिनइ । जय जयकार मुखई पभणइ, सेवइ दिशि कुमरी हरखि घणइ ।३। इग्यारस वदि पोष तणइ, तिहुयण जण नई उपकार भणइ । पामी शुभ संयम रमणी, सेवउ भवियण जण जगत घणी।४। वदि चउथि जिन मधुमासइ, निरमल केवल थानइ भासइ । पाप पडल टाली पासइ, जिम सूर करी तम भर नासइ ।। सावण सुदि अट्ठमी दिवसइ, निज जन्म थकी सउ मई वरसइ । पामी शिव रमणी हरसइ, जसु जस विस्तरियउ दिश विदशइ।६। मुझआंगणि सुरतरु वेलि फली,चिन्तामणि करियल आवि मिली। जसु समरणि सुर धेनु मिली, सो सेवउ जिनवर रंग रली ।। कलश इय पण कल्याणक नाम भणि श्री पास । संथुण्यउ जिनवर निरुपम महिम निवास ।। जिणचंद पसायइ लाभइ लील विलास । मुनि' समयसुन्दर नी पूरउमन नी पास ॥८॥ १ गणि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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