________________
( १६८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
अष्ट महाप्रातिहार्य गर्भित पार्श्वनाथ स्तवनम्
कनक सिंहासन सुर रचिय, प्रभु बसण अतिसार । धरम प्रकासह पास जिरा, बइठी परषदा बार || १ || सीस उपर अति सोहितउए, छत्र त्रय सुविशाल । तिण प्रभु त्रिभुवन राजियउए, न्याय धरम प्रतिपाल ||२|| बिहुँ पासे उज्वल विमल, गंग प्रवाह चामर वीजत' देवता ए, वपु वपु पुण्य अष्टोत्तर सउ कर रुचिर, ऊंचउ वृक्ष नव पल्लव छाया बहुल, टालइ सुरनर शोक ||४|| मोह तिमिर भर संहरण, भामंडल प्रभु पूठि । तेजक उए, जिम रवि जलधर बूठि ||५|| जानु प्रमाणइ जिन aणइए, जल थल भासर जाति ।
अशोक ।
कुसुम वृष्टि विरचंति सुर, पंच वरण बहु भांति || ६ || वीणा वेणु मृदंग वर, सुर दुंदुभि दिव्यनाद जिनवर तणउए, अमृत सम
गुहिर गंभीर मधुर गगने, वाजइ तीर्थकर पदवी तणउए प्रकट्यौ पुण्य
वाजित्र
१ ढालइ
Jain Educationa International
समान । प्रमाण || ३ ||
For Personal and Private Use Only
संवाद | स्वाद ||७||
॥ क ल श ॥
इम पास जिनेसर परमेसर सुखकंद | आठ प्रतिहारज शोभित श्री जिनचंद || सेवे सुरनर किन्नर सकलचंद मुनि वृंद | नित समयसुंदर सुख पूरउ परमाणंद ॥ ६ ॥
तूर । पडूर ||८||
www.jainelibrary.org