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________________ श्री पार्श्वनाथशृंगाटक बन्ध स्तवनम् (१६३ ) भुवननायक-नायक-नायकं, प्रणितु नावज नावज-नावजम् । जिन भवंत-मवंत-मवंतमं, स शिव-मापरमा-परमा-परम् ।३। [त्रिभिः कुलकम् ] रक्सिमोदय-मोदय मोदय, क्रमण-नीरज-नीरज-नीरज । लसदु' मामय-मामय-मामय, व्यय कृपालय पालय पालयः।४। इति मया प्रभुपार्श्वजिनेश्वरः, समयसुन्दरपनदिनेश्वरः । यमकबन्धकवित्वभरैः स्तुतः, सकलऋद्धिसमृद्धिकरोस्त्वतः।। इति यमकबन्धं श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम् । श्रीपार्श्वनाथशृंगाटकबन्धस्तवनम् . कमन-कंद-निकंदन-कर्मदं, कठिन-कक्ष-ममा नमति समम् । मदन-मंदर-मर्दन-नंदिरं, नयन-नंदन-नंदनि निर्द्धनम् ॥१॥ निखिल- नित-निश्वन-नर्दितं, नत जनं सम-नर्मद-दंभमम् । दम-पदं विमदं घन-नव्यभं, नभ-वनं हससं शिवसंभवम् ॥२॥ सतत-सजन-नंदित-नव्यभ, नयधनं वरलब्धिधरं समम् । रदन-नक्रमन-श्चलन-प्रियं, नलिन-नव्यय-नष्ट-वनं कलम् ॥३॥ ललवलं सकलं शम-लक्षितं, ततमतं सततं निज जन्मतम् । जगदजं विरजं दम-मंदिरं, महित-मंगप पण्डित-पर्षदम् ॥४॥ १ स्फुर दुमामयमा मय मामय। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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