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( १७२ )
समयसुन्दरकृप्तिकुसुमाञ्जलि
प्रणमंतां पातिक टलइ रे, दरसण दउलति होय । गीत गान गरुयडि चढइ रे, सेवा करइ सहु कोय ।३। चिं०। वामा राणी उरि धरचउरे, अश्वसेन कुलचंद । पार्श्व चिंतामणि प्रणमतां रे, समयसुन्दर आणंद ।४। चि०।
___xxxx श्री अजाहरा पार्श्वनाथ भास
(१) राग-केदारउ आवउ देव जुहारउ अजोहर उपास, पूरइ मन नी प्रास। तीरथ मांहि मोटउ रे त्रिभुवन माहि,जागती महिमा जास।प्रा०१॥
आदि न जाणइ रे एहनी कोई, अरिहंत अकल सरूप । सती सीता रे प्रतिमा पूजी एह, भक्ति करइ सुर भूप । प्रा०।२। परता पूरइ परतिख एह, समरयां दै प्रभु साद। चिंता चूरइ रे चित्त नी, वेग हरइ विषवाद ।आ०१३॥ भगवंत भेट्यउ रे अजाहरउ पास, सफल थयउ अवतार। तीरथ जूनउ रे जागतउ एह, समयसुंदर सुखकार ।प्रा०।४।
आवउ जुहारउ रे अजाहरउ पास, सहू नी पूरइ आस । आवउ०। त्रिभुवन मोहउ रे तोरथ एह, जागति महिमा जेह ॥१॥
आदि न जाणइ रे एहनी कोय, भगवंत भेट्यउ सोय । सीता पूजी रे प्रतिमा रंगि, भगति करी बहु भंगि ॥२॥
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