SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नारंगा पार्श्वनाथ स्तवनम् ( १७३ ) परता पूरइ रे पास जिणंद, दूरि करइ दुख दंद | चिंता चूरह रे चित नी एह, वेलू मय छह देह || ३ || तीरथ भेट्य म्हे आज, सीधा बंछित काज । तीरथ जूनउ रे अजाहरड़ जाणि, समयसुंदर मुख पाणि ॥ ४ ॥ श्री नारंगा पार्श्वनाथ स्तवनम् I पारसनाथ कृपों पर, पाप राउ मुज दूरि । निरखता तुझ मूरति मूं रति थाई भरपूरि ||१|| यति सुन्दर तुझ सरति, सूर तिमिर हरइ जेम | ति सकलाप सुकोमल, को मल नहिं नहिं प्रेम ||२|| सुन्दर वदन विलोकन, लोकनई तू हितकार । वामा देवी नंदन, नंद नलिन पद चार ||३|| कुल कजल नीलक, नील कमल सम देह | भव समुद्र तूं तारक, तार कला गुण गेह ||४|| भाव सेवइ भुजंगम, जंगम परिण थिर थाय । न परइ भगत वैतरणी, तरणी लाधु उपाय ||५|| जग बांधव जग वत्सल, वत्स लघु जिम पालि । श्री जगगुरु जगजीवन, जीव नउ तूं दुख टालि ॥ ६ ॥ वंश इखाग निशाकर, साकर सम तुझ वाणि । भव भव हूँ तुझ सेवक, सेव करू तें झाणि ||७|| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy