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श्री चिन्तामणि पार्श्वजिन स्तवनम्
( १७१ )
एह स्तोत्र जगत मन धरइ, तेहना काज सदाइ सरह ।
आधि व्याधि दुख जावइ दरि, चिंतामणि म्हारी चिंता चूरि॥६॥ भव भव देज्यो तुम पय सेव, श्री चिंतामणि अरिहंत देव । समयसुंदर कहइ सुख भरपूरि, चिंतामणि म्हारी चिंता चूरि ॥७॥ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भास
राग-भयरव चिंतामणि म्हारी चिंता चूरि, पारसनाथ मुझ वंछित पूरि ।। जागतउ देव तू हाजर हजूरि, दुख दोहग अलगां करि दूरि।२। सदा जुहारू उगंतइ सरि, समयसुंदर कहइ करि तू पडूरि।३। इति श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भास ॥३५॥
-*श्री सिकन्दरपुर चिन्तामणि पाश्र्वनाथ स्तवन
राग-धमाल, फागनी जाति स्यामल वरण सहामणी रे, मूरति मोहन वेल । जोतां तृप्ति न पामियइ रे, नयण अमी रस रेल ।१॥ चिंतामणि पास जुहारियइ रे, सिकंदरपुर सिणगार । चिं.। अांकणी तूं प्रभु त्रिभुवन गजियउ रे, हूँ प्रभु तोरउ दास । तिण पर शरणै हूँ आवियउ रे, साहिब सुणि अरदास ।२. चिं०।
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