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श्री भाभा सोरीसा-पार्श्वनाथ स्तवनम् ( १६६ )
श्रावक पूजा स्नात्र करे सहू, सपूरव ताल पखाज रे। भगवंत आगल भावन भावइ, भय संकट जावइ अाजरे । भा०२। अश्वसेन राजा कउ अंगज, तेवीसम जिनराज रे। समयसन्दर कहइ सेवक तोरउ, तू मोरा सरताज रे । भा०।३।
(२) राग-भयरव भाभा पारसनाथ भलु करे, भलू करे भाभा भलू करे।भा०। अलिय विधन म्हारां अलगां हरे ।भा०।।. कुशल क्षेम करे मुझ घरे, ऋद्धि वृद्धि वाधे बहु परे । भा०।२। समयसुंदर कहइ मत किहां डरे,ध्यान एक भगवंत धरे।भा०।३।
इति श्री तीरथ भास छत्तीसी समाप्ता । संवत् १७०० वर्षे अाषाढ बदि १ दिने लिखितं ॥ छः॥३६॥
श्री सेरीसा पार्श्वनाथ स्तवनम् सकलाप मूरति सेरीसइ, पोस दसमी पारसनाथ भेट्यउ, देव नीमी देहरउ दीसइ । स०१॥ प्रतिमा लोडति जाइ पातालइ, धरणि आधीरइ सीसइ । भाव भगति भगवंत नी करतां, हरख घणइ हीयउ हींसइ। स०२। पटणी पारिख सूरजी संघ सँ, जात्र करी लाभ सुजगीसइ। समयसुंदर कहइ साचउ मंइ जाण्यउ, वीतराग देव विसवा वीसइ।
इति श्री सेरीसा मंडन पार्श्वनाथ भास ॥ ३१ ।।
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