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________________ श्री स्तंभन पार्श्वनाथ स्तवनम् ( १५६ ) तुझ मुख जिनवर देखि, नयण मेरे उल्लसइ रे । चंद चकोर तणी परि, तू मेरे मन वसई रे ॥ ३॥ सा० ॥ जन मन मोहति सोहति, रूप अनोपमइ रे । कमल रमइ रे || ४ || सा० ॥ पास जी रे । सुरपति नरपति गृहपति, पाय समयसुन्दर हूँ मांगत, थंभ साहिब पूरो मेरे मन की आस जी रे || शामा० ॥ श्री स्तंभन पार्श्वनाथ स्तवनम् बेकर जोड़ी वीनवु रे, सुणिजो थंभ पास । प्रभु परदेस चालतां रे, एक करू अरदास ॥१॥ जीवन जी वेगी देज्यो भेट || यांकणी ॥ ध्यान भलु छइताहरु रे, निरख्यां आणंद नेटि ||२|| जी० ॥ पंखेरू परदेसियां रे, नवि सरज्यउ नित वास । तनु छ साथी माहर रे, मनु छइ तोरइ पास || ३ || जी० ॥ वीड़ियां मन माहरु रे, दुख धरइ दिन दिन्न । के तूं जाइ केवली रे, के वलि मोरु मन्न ||४|| जी० || दर्शन व हि दाखिज्यो रे, सामी लील विलास । समयसुन्दर इम वीनवइ रे, पूरउ मन नी आस ||५|| जी० ॥ श्री स्तंभन पार्श्वनाथ गोसम् ढाल - नारिंग पुरवर पास जी ए० भलइ भेट्यउ रे, पास जिसेसर थंभाउ रे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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