SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि जगि जागती ज्योति तीरथ उदार, करै सुरनर कोड़ि प्रभु नइ जुहार | सदा सेवकां लोक सानिध्यकारी, प्रभु पास स्तंभनो विघ्न वारी || ६ || इम श्रोजिनचंद्र गुरु सकलचंद्र, सुपसाउलै समयसन्दर मुदि । थुण्यो त्रिभुवनाधीश संताप चूरइ, प्रभु पास स्थंभणो आस पूरइ ||७|| इति श्रीस्थंभणक पार्श्वनाथलघुस्तवनं । श्रीस्तंभतीर्थीयसंघ समभ्यर्थनया कृता संपूर्ण । ( १५८ ) श्रा स्तंभन पार्श्वनाथ स्तवनम् राग - गुड सफल भयउ नर जन्म, जो भेट्यउ थंभणो रे । उपजत परमानंद, मेरे मन अति घणो रे || १॥ साहिब के सेो चरणा, घनाघन सरीखे वरणा । दुनीमं दुख के हरणा, सेवक कु सुख के करणा ।। राखि संसार के किरणा, भये अब स्वामि के शरणा । श्रकरणो || श्री खरतर गच्छ नायक, सुखदायक यति रे । अभयदेवसूरीश्वर प्रकटित Jain Educationa International मूरति रे ||२|| सा० ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy