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( १६० ) समय पुदर ऋतिकुसुमाञ्जलि सामी सीधा वंछित काज, पाणंद अति घणरे ॥ भ०॥१॥ सामी तु तउ त्रिभुवन कैरउ राजियउ रे । सामी हूँ छू तोरउ दास, करुणा करउ रे॥ सामी माहरां रे, अलिय विधन दूरइ हरउ रे ॥भ०॥२॥ सामी तुम नई रे, बेकर जोड़ी बीनवु रे। सामी देज्यो भनि भवि सेव, तुम्हे यापणी रे ॥ . इम बोलइ रे, वाचक समयसुन्दर गणी रे ॥ भ०॥३॥
इति श्रीस्थंभण पार्श्वनाथ गीत संपूर्णम् ।। १६ ।। श्रीकंसारी-उंचावती मंडन भीडभंजन पार्श्वनाथ भास
चालउ सखी चित्त चाह सु, बावती नगरी तेथि रे। कंसारी केरउ जागतउ, तीरथ छइ जेथि रे॥११॥ भीडभंजन सामी भेटियउ, सखी प्रह उगमतह सूरि रे । पारसनाथ भेटियइ, दुख दोहग जायइ दूरि रे॥२॥भी०॥ सखि प्रारति चिंता अपहरइ, विछरचा वाल्हेसर मेलइ रे। रोग सोग गमाडइ, कीनर' दुसमिण नइ ठेलइ रे ॥३॥ भी०॥ सखि स्नात्र कीयां सुख संपजइ,गुण गातां लाभ अनंत रे। समयसुन्दर कहइ सुणउ, भय भंजण श्री भगवंत रे॥४॥भी०॥
इति श्री कंसारीमंडण भीड़भंजण पार्श्वनाथ भास ॥२३॥ १ ठांभर
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