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________________ जेलसमेर मण्डण पार्श्वजिन स्तवनम् (१५३ ) च्यवन जन्म दीक्षा ज्ञान निर्वाण रे, इण परि पंच कल्याणक जाण रे ॥मे॥४६॥ १७ राग-धन्याश्री इम थुण्यउ जेसलमेरु मंडण, दुरित खंडण शुभ मनइ । रस कर्ण दर्शन तरणि वरसइ, अादि जिन पारण दिनइ । जिनचंद-सूरति सकलचंदन, मृगमदा केसर करी । प्रह समइ-सुंदर पार्श्व पूजइ, तेहनी धन्यासिरी ॥४७॥ श्री लौद्रवपुर सहसफणा पार्श्वनाथ स्तवनम् लोद्रपुरइ आज महिमा घणी, यात्रा करउ श्री जिनवर तणी। प्रणमंतां पूरइ मन पास, सहसफरणा चिंतामणि पास ॥१॥ जूनो नगर हुंतर लोबो, सुन्दर पोल सरवर चउहटउ । सगर राय ना सखर आवास, सहसफरणा चितामणि पास ।२। उगणीसम पाटइ जेहनइ, सीहमल साह थयउ तेहनइ । जेसलमेरु नगर जस वास, सहसफणा चिंतामणि पास ।३। सीहमल नई सत थाहरू साह, धरम धुरधर अधिक उच्छाह । जीर्ण उद्धार करायो जास, सहसफणा चिंतामणि पास ।४। दंड कलस धज सोहामणा, रूड़ा नइ वलि रलियामणा। निरखंता थायइ पाप नो नास, सहफसणा चिंतामणि पास ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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