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श्री जेसलमेर मंडण पार्श्वजिन स्तवनम् (१५१ ।
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११ राग-उरी मोह मिथ्यात्व निद्रा तजउ, जीव जागउरी । परिहरउ पंच प्रमाद, भविक जीव जागउ री॥ राग द्वेष फल पाडुया, जीव जागउ री । मति करजो विषवाद, भविक जीव जागउ री ॥३४॥ द्यइ जिनवर उपदेस, धर्मध्यान लागउ री॥आंकणी ।। दाभ अणी जल बिन्दुयौ, जीव जागउ री । पड़त न लागह वार, धर्म ध्यान लागउ री॥ इण परे चंचल आउखो, जीव जागउ री । सकल कुटुंब परिवार, धर्म ध्यान लागउरी ॥३६॥
__१२ राग-केदारउ सउ वरस पाली आउखउ, तेत्रीस मुनि परिवार । वग्धारीपाणी प्रभु रह्या, मास संलेखण सार ॥३६॥ जिणंद राय चट्यउ रे, समेत गिरिंद । तिहां पाम्यउ रे, परमाणंद || जि० ॥ प्रभु श्रावण सुदिपाठम दिनइ, श्री पार्श्व शिवपुर गामि। निज कर्म ततखिण चूरिया, जिके दारुण परिणामि । जि०॥३७॥
१३ राग--परदउ तूं अरिहंत अकल अलख सरूपी, तूं निराकार निरंजन ज्योति रूपी । तूं ॥३॥
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