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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
कमठ चयउ कोपइ प्रभु ऊपरि, मेघ घटा जल वरसइ वहु परि ।। पा० ॥२५॥ धरणेन्द्र आवी कमठ धिक्कारयउ, जिन आशातन करत निवारयउ ॥ पा० ॥२६॥
६ राग-गुड चैत्र ठढम चउथी वासरइ, जिनवर अष्टम तप आदरइ । प्रभु पास रे, पूरइ अास रे ॥२७॥ चार कर्म नउ क्षय करी, पामो निरमल केवल सिरी। सुर आवइ रे, गुण गावइ रे ॥२८॥ माणिक हेम रूपा तणउ, विरचइ त्रिगड़उ सुर जिन तणउ। प्रभु सोहइ रे, मन मोहइ रे ॥२६॥ कुसुम वृष्टि वासंतिया, भागू डर देख हसंतिया । प्रभु संगी रे, मन रंगी रे ॥३०॥
१० राग-मारु
धन धन ते नर जी, तेहनउ जन्म प्रमाण ॥ध०॥ बारह परपदा मांहि वइसी नइ, श्रवण सुणइ तोरी वाण ॥३१॥ त्रिण छत्र सिर उपरि सोहइ, चामर ढोलइ इन्द्र जी । गयणंगण सुर दुदुभि वाजइ. पेखत परमाणंद ॥३०॥३२॥ मालवकोशिक राग आलापति, अमृत वचन अनूप जी। ध०। केवलज्ञानी धर्म प्रकासइ, जीव दया क्षमा रूप जी॥ध० ॥३३॥
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