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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
शुभ अनुकूल समीरण वायउ,
आनंद अंग न मायउ । थाल विशाल भरी मुक्ताफल, सारंग वदनी वधायउ ॥अश्व०॥१२॥
४ राग-वसंत सुपन पन्नग पेख्यउ, जननियइ सार । तिण प्रभु नाम दीधु, पार्श्व कुमार ॥१३॥ स्वामी नवकर तनु, नील वरण सोहइ । भुजंग लांछन रूपइ, जगत्र मोहइ ॥१४॥ प्रभावती राणी वर, गुण अनंत । सुर नर नारी चित्त, मांहे वसन्त ॥१५॥
५ राग-वैराड़ी कमठ कठिन तप करति कानन,
मठ पंचाग्नि साधइ चित्त वहइ अभिमान । कुमति देखाइइ बहु जन कमिथ्याच्च पाडइ,
तब प्रभु गज चढे आए री उद्यान ॥क०॥१६॥ जलतउ भुजंग लीधउ परमेष्ठि मंत्र दीधउ,
धरणेन्द्र कीधउ कृपानिधि शुभ ध्यान ॥०॥१७॥ मिथ्यात्व मारग टाल्यउ कमठ कउ मानगाल्यउ,
लोक देवइ राड़ी तेरउ तप अज्ञान ।क०॥१८॥
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