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श्री जेसलमेर मंडण पार्श्वजिन स्तवनम् (१४७ ,
नरपति अश्वसेन न्याय पवित्र, रामगिरी मनोहरी वामा कलत्र ॥ ॥॥
२ राग-देसाख दसम सुरलोक चवि भूरि सुख भोगवी । चैत्र वदि चउथ निशि गुण भरचउ ए ॥ स्वामी गुण०॥६॥ अश्वसेन राया धरइ माता वामा उरइ । हंस मानस सरह, अवतरचउ ए ॥ स्वामी अब० ॥७॥ चवद सुपन लह्या, कंत आगलि कह्या । राय तिहां फल कह्या, मति विचारी ॥अइयो मति०॥८॥ अम्ह कुल गुण निलउ, पुत्र होसइ भलउ। दस दिशा-खग ज्यु उद्योत कारी ॥ अ.यो उद्योत०॥६॥
३ राग-सारङ्ग सुत जायउ अश्वसेन राय के,
अश्वसेन राय के सुत जायउ । छप्पन दिशिकुमरो मिल गायउ,
नारकियइ सुख पायउ ॥अश्व०॥१०॥ पोष पढम दसमी दिन सामी,
बंश. इक्ष्वाग सुहायउ । चउसठ इन्द्र मिली मन रंगइ, __ मेरु शिखरि न्हवरायउ ॥अश्व०॥११॥
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