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( १४६ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सदा सामलउ रूप सकलाय सोहइ,
मुख देखतां माहरु मन मोहइ ।।३।। कृपानाथ सेवक तणा कष्ट कापइ,
अरिहंत जी अष्ट महासिद्धि आपइ ॥४॥ प्रमो प्रणमतां परम आणंद पावइ,
गुण समयसुन्दर जोड़ि गावइ ॥४॥ इति श्री फलवधि पार्श्वनाथ भास ॥१४॥
सप्तदश राग गर्भित श्री जेसलमेर मण्डण पार्वजिन स्तवनम् पुरिसादानी परगड़उ, जेसलमेर जिणंद । पंच कल्याणक तेहना, पभणिसु परमाणंद ॥१॥ जिनवर ना गुण गातां, लहियइ समकित सार। गोत्र तीर्थंकर बांधियउ, लहु तरियइ संसार ॥२॥ राग भेद रलियामणा, जाणइ चतुर सुजाण । भाव भगति गुण भाषतां, जीवित जन्म प्रमाण ३॥
१ राग-रामगिरि जंबूदीप माहइ भलू भरतक्षेत्र,
नयरी बणारसी रिद्धि विचित्र ॥ ज०॥४॥
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