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फलवद्धि पार्श्वनाथ स्तवनम्
(१४५ )
परता पूरइ पास, सामी लील विलास । तीरथ जागतउ ए, भव दुख भागतउ ए ॥६॥ आससेण कुल चंद, वामा राणी नंद । अहि लांछण भलउ ए, तू त्रिभुवन तिलउ ए॥७॥ समस्यउ देजे साद, टाले मन विषवाद । सानिध सर्वदा ए, करजो संपदा ए॥८॥ पास जिनेसर देव, भव भव देज्यो सेव । मुझ सेवक भणी ए, तू त्रिभुवन धणी ए ॥६॥
कलश
फलवधी मंडण पासनाह,
वीनवियउ जिनवर मन उच्छाह। पोष मास जन्म कल्याणक जाण,
गणि समयसुन्दर जात्रा प्रमाण ॥१०॥
(२)
राग-परभातो प्रभु फलवधी पास परभाति पूजउ,
दुनी मंइ नहीं को इसउ देव दूजउ ॥१॥ वडउ तीरथ एकलमल विराजइ,
नित आपणां सेवकां नइ निवाजइ ॥२॥
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