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________________ ( १४० ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि मोती मणि माला लांबी लरकई ॥ मेरइ तउ नेइ नवां भव कर्ड, तिण अंग उपांग सबइ थरकइ । समयसुन्दर कउ प्रभु ओ सखि आवइ, नीके पचरंगी नेजे फरकइ ॥२६॥ दादुर मोर करई अति सोर, प्रीयु प्रीयु बोलइ ए बप्पीउ रउ । मेहरउ टबका विजुरी झवकइ, कहउ क्यूं करि ठउर रहइ हियरउ ।। गिरिनारि गए ओ जोगीन्द्र भए, ___अब हूं भी हठक्कि राखु जीउरउ । समयसुन्दर के प्रभु नेमि छोरी, पणि हुतउ न छोरं मेरउ पीयरउ ॥२७॥ अथ अमोला बे, काली कोयल काहे री गोरी राजुल । देख्या कहां, नेमि सरीर हइ जाका सामल ॥ वः हम देख्या गिरिनार, जोग मारग पणि लिया । करइ तपस्या कष्ट, देह सुख छारी दीया ।। पाया केवल न्यान, इन्द्र करइ आवी सेवा । समयसुन्दर का सामि, देख्या ओ अरिहंत देवा ॥२८॥ बे बप्पीया भाई काहेरी, राजुल बाई तुप्रीयु कही केम सुणाई वः । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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