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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
मोती मणि माला लांबी लरकई ॥ मेरइ तउ नेइ नवां भव कर्ड,
तिण अंग उपांग सबइ थरकइ । समयसुन्दर कउ प्रभु ओ सखि आवइ,
नीके पचरंगी नेजे फरकइ ॥२६॥ दादुर मोर करई अति सोर,
प्रीयु प्रीयु बोलइ ए बप्पीउ रउ । मेहरउ टबका विजुरी झवकइ,
कहउ क्यूं करि ठउर रहइ हियरउ ।। गिरिनारि गए ओ जोगीन्द्र भए, ___अब हूं भी हठक्कि राखु जीउरउ । समयसुन्दर के प्रभु नेमि छोरी,
पणि हुतउ न छोरं मेरउ पीयरउ ॥२७॥ अथ अमोला बे, काली कोयल काहे री गोरी राजुल ।
देख्या कहां, नेमि सरीर हइ जाका सामल ॥ वः हम देख्या गिरिनार, जोग मारग पणि लिया ।
करइ तपस्या कष्ट, देह सुख छारी दीया ।। पाया केवल न्यान, इन्द्र करइ आवी सेवा ।
समयसुन्दर का सामि, देख्या ओ अरिहंत देवा ॥२८॥ बे बप्पीया भाई काहेरी,
राजुल बाई तुप्रीयु कही केम सुणाई वः ।
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