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नेमिनाथ सवैया .
( १४१ )
मेरा पिऊ तउ मेह हुँ तिण कुं, पोकारूँ मास आठ थया मुझ पाणी
पीधा विण सारूँ। मन मान्या की बात हई,
लोक प्रेमइ लपटाणा, समयसुन्दर प्रभु पासि जा,
तेरा मन तिहां लोभाणा ॥२६॥ वे मोर काहे री राजुल करइ जोर,
अरे मइ तउ करती हु निहोर वः । कहि तेरा कसै काम जहां मूकइ तहां जाउं,
प्रीयु कउ काम कियां पछी,वेगि वधाइ पाउं॥ गिरिनार गुफा मई नेमि,
हइ देखि केही तेरी दया । समयसुन्दर प्रभु का सामि,
मुझ गुनह विगरि छोरी गया ॥३०॥ अरे कारे कउया कहिरी राजुल मयुया,
वीर कछु बोलि नइ वधुया वः । . सहु बोलुहुसाच जाण को भाषा जाणइ,
कुशल क्षेम छइ कंत आरति मत काइ आणइ ।। पणि तु जा प्रियु पासि,
चारित लीयां दुखत्त किस्यइ ।
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