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नेमिनाथ सवैया
( १३६ )
समयसुन्दर के प्रभु नेमि की जान,
हाथी हम देखे सबइ कु गमइ ॥२३॥ नीलड़े पीलड़े कालुए धउलुए,
रातड़े चतुराई हुती चेतड़े । कसबी मुख मल्ल मोती मणि माणिक,
कंचणः सेती पलाण जड़े । हांसले वासले . धूसरे दूसरे,
ही ही हींसते प्रभु पास खड़े । समयसुन्दर के प्रभु प्रभु की जान में,
हम तौ सखि देखि हराण पड़े ॥२४॥ मणिः माणक रत्न प्रवाल जड्यउ,
सिर उप्पर पंच रंगो सेहरउ । काने कुडल ते झबकई बीजुरी,
बग पंकति हार मोती तेहरउ । गाजतइ. गजराज उंचइ चढयउ श्रावइ,
जगावह नवा भव कउ नेहरउ । समयसुन्दर कउ प्रभु नेमि देखउ,
जाणे स्याम घटो उमट्यउ मेहरउ ॥२॥ चली चतुरंग सेना सबली रज,
ऊडी जे जाइ लागी अरकह । इन्द्र चामर ढालइ धरइ सिर छत्र.
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