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(१३८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
देवमित्र २ चित्र हुँ रत्नक्ती ३ । देवमित्र ४ अपराजित राजा,
प्रेम पात्र नारी प्रियमती ५ ॥ पारण सखा ६ तुसंख जसोमति ७,
सुरमित्र ८ हुं नारी तु पती । समयसुन्दर प्रभु नवमइ मवि तई,
किम मूकी कहइ राजीमती ॥२१॥ चउसट्टि कला चतुराई धरु,
संजि सोल शृङ्गार रहुं सुधरी । भरतार क्रतार मिणु सरिखउ,
हुँ मना रीसायइ तउ पायु परी ॥ एक नेमि मेरइ एक नेमि मेरइ,
अरु बीजउ नहीं मइ तउ सूस करी । समयसुन्दर के प्रभु कु न ममी,
पणि मुं सरिखी कुण छइ सुन्दरी ॥२२॥ मद मत्त गंडस्थल मद्द करइ,
भमरा भमरी चिहुँ पासि भमई । सिर लाल सिन्दूर कीयउ सिणगार,
सुडा दंड उंचउ उलालइ नमई ॥ घणणु घणणु गल घंट वगई, ___गज गर्ज करइ जाणे मेघ घुमई।
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