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नेमिनाथ सवैया
जदुपति मई सगला सगला ए जीता, सहु दुसमिण मिलि करइ ति सोर ।
समयसुन्दर प्रभु मुझ मुकउ मां, राजुल नारी करइ राजा उग्रसेन समुद्र विजय हरि, कृष्ण गोपी भी मिली एकठी । कर जोड़ि करइ वीनति वार वार,
म मानव का वात हीया मंद गठी । सब राजन रिद्धि छोड़ी नीसर्यउ,
कुरण जाइ देखां हिव जोइ कठी || समयसुन्दर कउ प्रभु देखि सखी,
कहइ राजुल नेमि निपट्ट हठी ॥ १६ ॥ मन मान्या सेती एक वार की प्रीति,
जुड़ो जिका ते पि न जात लोपी । मेरे तर प्रीति नवां भव कीन,
छोडावि सकड़ नर नारि कोपी ।। नेमिनाथ विना तुम्हे कां नाम ल्यउ,
सखि उप्पर राजमती कहह कोपी । समयसुन्दर के प्रभु नेमि विना,
न वरु वर हूं रही पग्ग रोपी ||२०|| धनपति राय पिया तसु धनवति १,
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निहोर ॥ १८ ॥
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