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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
ऊनई गगनि घटा वरषति मेध छटा,
रयणि भई विकटा चित्त ही उदास रे । जोवन ऊलट्यउ जाइ पियु विण क्युं रहाइ,
जादव गयउ रिसाइ, अब कैसी आस रे॥ जपति राजुल नारि जाऊंगी हूँ गिरनारि,
लेउंगी संजमभार सुन्दर कहके पास रे ॥१६॥ गोपांगना मनावही आणंद अंगि पावही,
सुरिंद गुण गावही तोरण ताइ पाउरी । पसु पोकार वीनती सुणी भिया जदुपति, छोड़ाइ मोहि बंधती फेराइ रत्थ द्वारती
कृपाल काहे जाउ री॥ ऋटकि हार तोड़ती मटकि अंग मोड़ती, छटकि वीण छोड़ती लटकि भुहि लोडति
जपत्ति राजु वाउरी । गुनह हम न को किया मुगति चित्त मोहिया, - सुजोग पंथ तें लोया मोठउर क्यु रहइ हिया
सोमि सुन्दर कुसमझाउरी॥१७॥ कोकिल कल कठ हंस गति हील्यां,
सुक नासा ग हरिण चकोर । केसरि कटि लंक सुयालिम सिसलउ,
मंगल चाप' वेणी दंड मोर ॥ १ ऋफ प्रातिख्य में चाष को एक मात्रा स्वर वाला पक्षी लिखा है
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