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________________ (११४ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि मेरी बहिनी मन मान्या नी बात, मकरउ को केहनी तात । मे। सहुनी एहीज धात । मे० | आंकणो । आक तणा अक डोडिया, खावंता खारा होय । ईसर देव नइ ते चडइ, मन मानी बात जोय । मे०।२। रयणायर रयणे भरचउ, गंभीर सुंदर रीति । राजहंसा राचइ नहीं, मान सरोवर प्रीति । मे०।३। प्रांबलउ उंठइ परिहर यउ, नींब सुनेह सुचंग । कुमुदिनी सूरज परिहरचउ, चंद्र कलंकी मुसंग । मे०४। राजमती कहइ हुं सखी, गुणवंत रूप निधान । तउ ही नेमि परिहरी, निरगुण मुगति बहु मान । मे।। जउ पणि नीरागी नेमि जी, तउ पणि न मूकुतास। ऊनल गिरि राजुल मिली, समयसुन्दर प्रभु पास । मे०।६। इति श्री नेमिनाथ गीतम् ॥ १५॥ श्री नेमि जिन स्तवनम् दीप पतंग तणी परइ सुपियारा हो, एक पखो मारो नेह; नेम सुपियारा हो। हूं अत्यंत तोरी रागिणी सुपियारा हो, तूंकाइ छ मुझ छेह; नेम सुपियारा हो॥१॥ संगल तेसुकीजिये सुपियारा हो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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