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नेमिनाथ भास
( ११३ )
धन ध्यावर नेमि जिइ जनमे, धन खेलण की सेरी । जरासंध विरताव वसावी, द्वारिका नगरी नवेरी | सौ० | २ | मिश्र रहनेमि सहोदर, मूरति राजुल केरी ।
भाव भगति रिकरी मांहि भेटी, जिन प्रतिमा बहुतेरी | सौ० | ३ | जात्र जावतात हम बइठे, जमुना जल की बेरी । समयसुन्दर कहइ ठ नेमीसर, राखि संसार की फेरी । सौ० |४| इति श्री सौरीपुर मंडन नेमिनाथ भास ।
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श्री नडुलाई मंडण नेमिनाथ भास
राग - सारंग
नडलाई निरख्यउ, जादवड न०
ऊंचउ परवत उपरि उनयउ, मन मोरउ चातक हरख्यउ | १ | न० | साम मूरति तेज बीजलि राजित, वसुधा जल वरख्यउ ।
समयसु दर कहइ समुद्र विजय सुत, प्रभु जलधर समउ परख्यउ |२|
इति श्री नडुलाई मंडण नेमिनाथ भास ॥ १८ ॥
श्री नेमिराजुल गीतम्
ढाल - मेरी बहिनी सेतुज भेटू गी- आदिनाथ नी बहिनी नी ।
चांपा " ते रूपड़ रूपड़ा *, परिमल सुगंध सरूप । भमरा मनि मान्या नहीं, गुण जागइ न अनूप |१| चांपलउ
* सूयड़उ
+ मानइ
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