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________________ ( ११२) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि का गिरनार गढइ चढूं, जपतउ अहनिशि जाप। प्रापति बिण किम पामिइं, मन मान्या मेलाप । नेद।२। तुम सुमांड्यउ नेहलउ, पूरउ नवि निरवाह। आगे पणि राजिमती, नारी करी निरुच्छाह । ने। दू०३। तूं समरथ त्रिभुवन धणी, अंतराय सवि मेटि। समयसुन्दर कहइ नेमिजी, वेगी देज्यो भेटिं । ने। दू०।४। इति श्री गिरनार तीरथ नेमिनाथ उलंभा भास ।।६।। (२) परतिख प्रभु मोरी वंदना, आज चडी परमाण । नेमिजी। भाग संजोगउ तू भेटियउ,जादव प्रीति सुजाण । नेमिजी।१०प०। परम प्रीति खरो प्रभु ताहरी,निरवाहइ निरवाण । नेमिजी। नव भव नारि राजिमती, तारी आप समाण । नेमिजी।२।१० अंतरजामी आपणउ, तेसू केही काणि । नेमिजी। अोलंभा पिण श्रापीयइ, कीजइ कोडि वखाण । नेमिजी।३।१०। उलंभउ उतरावियउ, आपणउ सेवक जाणि । नेमिजी। श्री गिरनार यात्रा करी, समयसुन्दर सुविहाण। नेमिजी।४।१०। इति श्री नेमिनाथ उलंभा उतारण गिरनार भास ॥७॥ श्री सौरीपुर मंडन नेमिनाथ भास राग-गूजरी सौरीपुर जात्र करी प्रभु तेरी । जन्म कल्याणक भूमिका फरसी,मन आस्या फली मेरी। सौ०।१। * श्री गिरनार जुहारियो जगजीवन जग भाण । ने० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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