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शान्तिनाथपंचकल्याणकस्तवन
(१०५)
॥हाल ॥
जसु मंडप चिहुं पासि नित नाटक करइ,
मिलि चउवीसे पूतली ए। दोय वजावइ ताल दोय वीणा वंसी,
दोय वजावइ वांसली ए॥ दोइ करि धरि बात्र तांत बजावए,
गीत गान जिन ना करई ए। दोय वजावइ सार धो धो मद्दला,
दोय करियलि चामर धरइ ए ॥२२॥ दोय करि पूरण कुंभ जाणे जिणवर,
स्नान भणी पाणी भर्या ए। एक वजावइ भेरि तिय मुहि करि,
धरि जोतां जिण जण मण हा ए॥ नव पूतलि नव वेष करिय नवे पदे,
नाचइ सोचइ मनि करी ए। जाणे शांति जिणंद आगलि अहनिशि,
नृत्य करइ सुर सुन्दरी ए ॥२३॥ चउदंती चउपासि रूप मणोहर,
पूर्ण कुंभ निय करि धरइ ए। जाणे चउ दिगदंती सामि सेवा थकी,
भवसागर लीला तरइ ए ।।
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