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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
नान्हा मोटा थंभ छोह पंक्ति भीति,
चारु चित्र वलि चिहुं दिसइ ए। एहवउ जिणहर गेह अहनिशि निरखंता,
_भवियण जण मण उल्हसइ ए ॥२४॥ इम थुण्यउ जिणवर संति दिणयर, भरिय तिमिर विहंडणो। अणहिल्ल पाटण मांहि श्री, त्रंबाड़वाड़ा मंडणो । गच्छराय जिनचंद सरि सीसय, सकलचंद्र मुणीसरो। तसु सीस पभणइ समयसुन्दर, हवउ जिन मुह सुह करो॥२५
इति श्रीशांतिनाथपंचकल्याणकगर्भितदेवगृहवर्णनयुक्तदीर्घ स्तषनम् समाप्तम् ।*
जेसलमेर मण्डन श्री शांति जिन स्तवनम्
अष्टापद हो ऊपरलो प्रासादक, बींदे जी संघवी करावियउ। जिण लीधो हो लक्ष्मी नो लाहक, पुण्य भंडार भरावियउ॥१॥ मोरा साहिब हो श्री शांतिजिणंदक, मनोहर प्रतिमा सुदरू। निरखता हो थाये नयणानंदक, वंछित पूरण सुरतरु ।।२।। देहरइ में हो पेसंता दुवार क, सेत्रुजे पाट सु देखियइ । भमती मंइ हो बहु जिनवर बिंबक, नयण देखि आणंदियइ ॥३॥
* जेसलमेर बड़ा झान भण्डार-द्वितीय पत्र से
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