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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
कनकपङ्कज कदम्बेषु कारिणं
सञ्चारिणं, सम्पदां भागधेयम् ।
अत्रिसुत वाहनेनाङ्कितं जिनवरं,
पापकु' भीनसे वैनतेयम्
विकटसंकटपयोराशिवटसंभव, विश्वसेनाङ्गजं सौख्य सन्तानवल्ली विताने
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विश्वभूपम् ।
घनं,
| शा० २रा
समय सुन्दरसदानन्दरूपम्
श्री पाटण - शांतिनाथपंचकल्याणकगर्भित देवगृहवर्णर्नयुक्तदीर्घस्तवनम्
मूरत सोवन वान । मन मोहती ए ॥ १७॥ अधिक उलासि ।
| शां०|३|
सूरत सोहती ए जन पीतल पड़िमा पासि, भेव्य संतीसर तणी ए, तिहुण प्रभु तोरण मारि, सुन्दरि पूतलि च्यारि । प्रभु सेवा करि ए, दोइ दीवी घरी ए || १६ |
जण घणो ए ॥ १८ ॥
पंच वरण वर पाट, रचिय रसाल सुघाट । चिहुँ दिसि चंदुआ ए, ऊपरि बांधिया ए ||२०|| जोवर जर सब कोई, पीतल घंटा दोह । रग रग रगगइ ए, जिस जय जय भगइ ए ॥ २१॥
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