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विमलनाथ भास
( १०३ )
पग पूजी च पावड़ साले,
अरिहंत देव दुवारि री माई । निसही तीन करे तिहुँ ठामे,
पांचे निगमन सार री माई ।२। वि०॥ त्रिएह प्रदक्षिण भमती देऊ
त्रिएह करू परणाम री माई । चैत्य वंदन करि देव जुहारु,
गुण गाऊं अभिराम री माई ।३। वि० भमती मांहि भमवि जे भवियण,
ते न भमइ संसार री माई । समयसुन्दर कहइ मन बंछित सुख,
ते पामइ भव पार री माई ।४। वि० इति श्री आगरामण्डन श्री विमलनाथ भाल !॥२५॥
श्री शान्तिनाथ गीतम्
राग-केदारउ शान्तिनाथं भजे शांतिसुखदायकं,
नायकं केवलज्ञानगेहम् ।। कर्ममलपङ्ककादम्बिनीसमभं,
मगनसागरधनुर्मानदेहम् ।शां०११
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