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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
साठ लाख वरसां लगी, पाली सगली आयो जी। सप्तमी वदि श्रापाड़ नी, सिद्ध थया जिनरायो जी। वि०।१२। सुन्दर मूरति प्रभु तणी, निरखंतां सुख थायो जी। हियडो हीसंइ माहरो, पातिक दूर पुलायो जी । वि०१३। प्रभु दर्शन सुख संपदा, प्रभु दरशन दुख दूरो जी। प्रभु दरसन दौलति सदा, प्रभु दरसन सुख पूरो जी। वि०१४।
। कलश ।। इम पंच कल्याणक परंपर, मेदनी तट मंडणो, . श्रीविमल जिनवर संघ सुखकर, दुरिय दोहग खंडणो। जिनचंद्रसूरि सुशिष्य पंडित, सकलचंद मुनीश ए,
तसु शिष्य वाचक समयसुन्दर, संथुण्योसु जगीश ए।१५॥
श्री आगरा मंडण श्री विमलनाथ भास देव जुहारण देहरइ चाली,
सहिय ससमाणी साथि री माई। केसर चंदण भरिय कचोलड़ी,
कुसुम की माला हाथि री माई ।१। विमलनाथ मेरउ मन लागउ,
श्यामा कउ नंदन लाल री माई ।। प्रांकणी ।।
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