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शीतलनाथस्तवनम् ( ) मोती कउ हो जउ पहिरउ हार,
तउ चिरमठि कुण पहिरइ हियइ । जसु गांठि हो लाख कोड़ि गरथ,
ते व्याज काढी दाम किम लीयइ । मो०१७॥ घर माहे हो जउ प्रगट्यउ निधान,
तउ देसंतरि कहउ कुण भमइ । सोना कउ हो जउ पुरुसउ सीध,
तउ धातुवादि नइ कुण धमइ । मो०।। जिण कीधा हो जवहर व्यापार,
तउ मणिहारी मनि किम गमइ । जिण कीधउ हो सदा हाल हुकम्म,
तउ वे तूंकारचउ किम खमइ ।मो018। तू साहिब हो मोरउ जीवन प्राण कि,
हूं सेवक प्रभु ताहरउ । मोरउ जीवित हो आज जन्म प्रमा कि,
भव दुख भागउ माहरउ । मो०।१०। तुझ मूरति हो देखतां प्राय कि,
. समोवसरण मुझ सांभरइ । जिन प्रतिमा हो जिन सारिखी जाण कि,
मूरिख जे सांसउ करइ । मो०।११॥ तुम दरसण हो मुझ आणंद पूर कि,
जिम जगि चंद चकोरड़ा ।
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