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समयमुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
तुम दरसण हो मुझ मन उछरंग कि,
मेह आगम जिम मोरड़ा ।मो० ॥१२॥ तुम नामइ हो मोरा पाप पुलाइ कि,
जिम दिन ऊगइ चोरड़ा । तुम नामइ हो सुख संपति थाय कि,
मन पंछित फलइ मोरडा । मो०११३॥ हुं मांगू हो हिव अविहड़ प्रेम कि,
नित नित करूय निहोरड़ा । मुझ देज्यो हो सामी भव भवि सेव कि,
चरण न छोडू तोरड़ा । मो०।१४॥
॥ कलश ।।।
इम अमरसर पुर संघ सुखकर, मात नंदा नंदणो, सकलाप शीतलनाथ सामी, सकल जाण आणंदणो। श्रीवच्छ लंछण वरण कंचण, रूप सुंदर सोह ए।
एतवन कीधउ समयसुन्दर, सुणत जण मण मोहए।१५। इति श्रीअमरसरमंडनश्रीशीतलनाथबृहत्स्तवनं संपूर्ण कृतं लिखितञ्च।
श्री मेडता मंडण विमलनाथ पंचकल्याणक स्तवनम् विमलनाथ सुणो वीनति, हूँ छु तोरउ दासो जी। तूं समरथ त्रिभुवन घणी, पूरि हमारी आसो जी। वि०॥१॥
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