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( १८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि दुख भांजइ हो तुदीनदयाल कि,
वात सुणी मई तोरडी । मो०१॥ तिण तोरइ हो हुँ आयउ पासि कि,
मुझि मन आसा छइ घणी । कर जोड़ी हो कहुँ मननी बात कि,
तूं सुणिजे त्रिभुवन धणी । मो०।२। हूँ भमियउ हो भव समुद्र मझारि कि,
दुखु अनंता मई सद्या । ते जाणइ हो तूंहिज जिनराय कि,
मई किम जायइ ते कया । मो०३। भाग जोगइ हो तारेउ श्री भगवंत कि,
दरसण नयणे निरखियउ । मन मान्यउ हो मोरइ अरिहंत कि,
हीयडउ हेजइ हरखियउ । मो०४। एक निश्चय हो मंइ कीधउ अाज कि,
तुझ विण देव वीजउ नहीं। चिंतामणि हो जउ पायउ रतन,
तउ काच ग्रहई नहीं को सही ।मो०१५॥ पंचामृत हो जउ भोजन कीध,
तउ खलि खावा किम मन थियइ । कंठ तांइ हो जउ अमृत पीध,
तउ खारउ जल कहउ कुण पीयइ । मो०।६।
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