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शीतलजिनगीतम्
शीतलनाथ सदा सुखदायक, नायक सकल दुनी को। समयसुन्दर कहै जनम जनम लग, मैं सेवक जिन जी को।मु०॥३॥
श्री शीतल जिन गीतम्
राग-देशाख काहट सखि कउण कहीजइ,
तुम कुंअवधि बरस की दीजइ । क० । सुत हरि वाचि सबद प्रथमावर,
जणणी जास भणीजह । क० ॥१॥ आदि विना जलनिधि नवि दीसइ,
मध्य विना सलहीजइ । अंत विना सब कु दुखकारी,
सब मिली नाम सुणीजइ । क. १२। . हरि सोदर रमणी सुरभी सिसु,
दो मिली चिन्ह धरीजइ । समयसुन्दर कहह अहनिशि उनके,
पद पंकज प्रणमीजइ । क. १३
श्री अमरसर मण्डण श्री शीतलनाथ बृहत्स्तवनम् पूजीजइहे सखि फलवधि पास कि पासा पूरइ सुरमणी । एहनी ढाल । मोरा साहिब हो श्री शीतलनाथ कि,
वीनति सुणि एक मोरड़ी ।
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