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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
तूंप्रभु त्रिभुवन राजियो, वीनतड़ी अवधार । पूरि मनोरथ माहरा, आवागमन निवार ।मू०॥११॥ तूं गति तूंमति तूंधणी, तूं भवतारण हार । तूं त्रिभुवन पति तूं गुरु, तूंमुझ प्राण आधार । मू०।१२। मुझ मन मधुकर मोहियो, तुझ पद पंकज लीन । सेव करूनित ताहरी, जिम सागर जल मीन । मू०।१३। तुम दर्शन सुख संपजे, तुम दरशन दुख जाय । तुम दरसन संघ गहगहै, तुम दरसन सुपसाय । मू०१४। भगति भली परे केलवी, मीठी अमिय समान। भक्ति वच्छल भगवंत जी, यो मुझ केवल ज्ञान । मू०।१५॥
। कलश ।। इय नाभिनंदन जगत वंदन, सेत्रावापुर मण्डणो। वीनव्यो जिनवर संघ सुखकर, दुरिय दोहग खंडणो।। गच्छराज युग प्रधान जिनचंद सूरि शिष्य शिरोमणि । गणि सकलचंद विनेय वाचक, समयसुन्दर सुख भणी।१६।
श्री ऋषभदेव हुलरामणा गीतम
राग-परजीयउ रूड़ा ऋषभ जी घरि श्रावउ रे, हालरियु गाऊं रे गाउं।रू०। मरुदेवी माता इण परि बोला, जीवन तोरी बलि जाउं रे।रू०१॥
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