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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
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सेत्राबा मंडन श्री आदिनाथ जिन स्तवनम मूरति मोहन वेलड़ी, प्रगटी पुण्य पडूर। ऋषभ तणी रलियामणी, प्रणमंता सुख पूर । मू०।१। संवत सोल पंचावनइ, फागुण सुदि रविवार । प्रगट थई प्रतिमा घणी, सेत्रावा सिणगार । मू०।२। ऋषभ शीतल शांति वीरजी, श्री वासुपूज्य अनूप। सकल सुकोमल शोभती, प्रतिमा पांचे सरूप ।मू०।३। श्री संघ रंग वधामणा, आणंद अंग न माय । भाव भगति करि भेटियो, प्रथम जिणेसर राय । मू०।४। सुंदर मूरति स्वामि नी, ज्योति जग्गमति थाय । जोतां तृपति न पामियइ, पातक दूर पुलाय । मू०।५। रूप अनुपम जिन तणो, रसना वरण्यो न जाय । भगति भणी गुण भाखतां, सफल मानव भव थाय।मू०।६। प्रतिमानो मुख चन्द्रमा, लोचन अमिय कचोल। दीप सिखा जिसी नासिका, कंचण द्रपण कचोल।मु०॥७॥ कुद कली रदनावली, अद्भुत अधर प्रवाल । सोवन देह सुहामणी, निर्मल शशि दल भाल । मू०।८। जिन प्रतिमा जिन सारखी, बोली सूत्र मझार । भवियण नै भव तारिवा, त्रिभुवन नै हितकार । मू०।। जिनवर दरसण देखतां, लहिये समकित सार। आद्र कुमार तणी परइ, शय्यंभव गणधार । मू०१०
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