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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि (८१ ) श्री पुरिमताल मंडण आदिनाथ भास
दाल-राती कांबलडी नी। भरत नइ यह ओलंमड़ा रे । मरुदेवी अनेक प्रकार रे, म्हारउ बालूयड़उ । बालुयडउ नयणि दिखाडि रे, म्हारउ नान्हडियउ । किणी। तूं सुख लीला भोगवइ रे, ऋषभ नीन करइ सार रे। म्हा० ॥१॥ पुरिमताल समोसरचा रे, ऋषभ जी त्रिभुवन राय रे। म्हा० । भरत कुयर सुपरिवरी रे, मरुदेवी वांदण जाय रे। म्हा० ।। ऋद्धि देखी मन चीतवइ रे, एक पखउ म्हारउ रागरे। म्हा० । राति दिवस हूँ भूरती रे, ऋषभ नुमन नीरागरे। म्हा० ॥३॥ पुत्र पहिली मुगतिं गयी रे, शिव वधूजोवा काज रे। म्हा० । समयसुन्दर सुप्रसन्न सदारे, आदीसर जिनराज रे। म्हा०॥४॥
श्री आदिदेवचंदगीतम
राग-श्रीराग नाभिरायां कुलचंद आदि जिणंद,
मरुदेवी नंदन विश्वगुरो । त्रिभुवन दिनकर जिनवर सुखकर,
वांछित पूरण कलपतरो ॥१॥ ना०॥ जण मण रंजणो दुख गंजणो,
प्रणमति समयसुन्दर चरणो ॥२॥ ना०॥
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