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समयसुन्दर कृतिकुसुमाञ्जलि
( ७१ )
दूसम काले दोहिलउ जी, सुधउ गुरु संयोग । परमारथ प्रीछ नहीं जी, गडर प्रवाही लोग । ६ । कृ० । तिण तुझ आगल आपणा जी, पाप आलोवु आज ।
माय बाप आगल बोलतां जी, बालक केही लाज । ७ । कृ० । जिनधर्म जिनधर्म सहु करइ जी, थापर आपणी जी बात । समाचारी जुड़ जुइ जी, संसय पड्यां मिथ्यात | ८ | कृ० | जाण अजाणपण करी जी, बोल्या उत्सूत्र बोल । रतनइ काग उडावतां जी, हारयउ जनम निटोल | ६ | कु० । भगवंत भाख्यउ ते किहांजी, किहां मुझ करणी एह ।
गज पाखर खर किम सहइ जी, सबल विमासा एह | १० | कु० । आप परूप्यु आकरउ जी, जागइ लोक तहंत । पण न करूं परमादियउ जी, मासाहस दृष्टांत | ११ | कु० । काल अनंते मंद लह्या जी, तीन रतन श्रीकार । पण परमादे पाड़िया जी, किहां जड़ करु पुकार | १२ | कृ० । जाणू उत्कृष्टी करूँ जी, उद्यत करुय विहार | धीरज जीव धरह नहीं जी, पोतह बहु संसार | १३ | कृ० । सहज पड्यउ मुझ आकरउ जी, न गमइ भूडी बात । परनिंदा करतां थकां जी, जायई दिन नइ रात | १४ | कृ० | किरिया करतां दोहिली जी, आलस आणइ जीव । धरम पar धंधs पड्यो जी, नरकइ करस्यइ रीव | १५ | कु० । हूंता गुण को कह जी, तो हरखू' निसदीस । को हित सीख भली कहइ जी, तो मन आणू रीस | १६ | कु० ।
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