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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि (६६ ) देव जुहारी देहरी मन मोबउ रे,
प्रगट्यउ परमाणंद लाल मन मोघउ रे ॥३॥ खरतर वसही वांदिया मन मोबउ रे,
संतीसर सुखकंद लाल मन मोबउ रे। राइणि. तल पगला नम्या मन मोह्यउ रे,
अदबुद आदि जिणंद लाल मन मोबउ रे ॥४॥ पांचे पांडव पूजिया मन मोबउ रे,
सोलमउ जिनवर राय लाल मन मोबउ रे । सकल बिंब प्रणम्या मुदा मन मोह्यउ रे,
गज चढि मरुदेवी माय लाल मन मोबउ रे ॥५॥ चेलण तलाइ सिद्ध सिला मन मोबउ रे,
अति भलउ उलखा झोल लाल मन मोबउ रे। सिद्ध वड़ कुंड सोहामणा मन मोघउ रे,
निरखंता रंगरोल लाल मन मोहउ रे॥६॥ इण गिरि रिषभ समोसरचा मन मोह्यउ रे,
पूरब निवाणु वार लाल मन मोबउ रे । मुनिवर जे मुगति गया मन मोह्यउ रे,
ते कुण जाणइ पार लाल मन मोह्यउ रे ॥७॥ संवत सोल अठावनइ मन मोघउ रे, __ चैत्री पूनम सार लाल मन मोबउ रे।
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