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________________ समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि (६० ) श्री शत्रुजय तीर्थ भास राग-मारुणी-धन्याश्री । जाति धमालनी सकल तीरथ मांहि सुन्दरु, सोरठ देश शृङ्गार । सुरनर कोड़ि सेवा करइ, सेञ्ज तीरथ सार।१। चालउ चालउ विमल गिरि जाइयइ रे, भेटउ श्री ऋषभ जिणंद ।चा०। आंकणी। ए गिरि नी महिमा घणी, पामइ को नहिं पार । तउ पण भगति भोलम भणु, सेत्रअ जग सुखकार । २।चा ऋषभ जिणंद समोसरचा, पूरब निवाणु वार । पांच कोड़ि सुपरिवरया, श्री पुण्डरीक गणधार । ३ । चा० सेत्रज शिखरि समोसरचा, तीर्थकर तेवीस । पांचे पांडव शिव गया, चरण नमुनिशदीश । ४ । चा। मुगति निलउ जाणी करी, मुनिवर कोड़ि अनंत । इण गिरि आवो समोसरचा, सिद्ध गया भगवंत । ५। चा० धन धन आज दिवस घड़ी, धन धन मुझ अवतार । सेत्तञ्ज शिखर ऊपर चडी, भेट्यउ श्री नामि मल्हार । ६ । चा०। चंद चकोर ती परइ, निरखंता सुख थाय । हीयड हेजइ उल्हसइ, आणंद अंगि न माय । ७ । चा० दुख दावानल उपसम्यो, वूठउ अमिय मइ मेह। . मुझ गणि सुरतरु फल्यउ,भागउ भव भ्रमण संदेह । ८। चा०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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