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( ६६ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
पुंडरीक प्रतिमा नमु रे,
चउमुखि प्रभु प्रतिमा चारि रे । चा०॥ खरतर वसही वांदियइ रे,
श्री शांति जिनेसर राय रे। अदबुद आदि जुहारियइ रे,
नित चरण नमु चित लाय रे ।चा०।६। घडता चउ गति भव टलइ,
प्रणमतां पातक जाय रे। समरतां सुख संपजइ रे,
निरखंता नव निधि थाइ रे । चा०।७। संवत सोल चिमालमइ रे,
चैत्र मासि वदि चउथि बुधवार रे। जिनचंद्रसरि जात्रा करी रे,
चतुर्विध संघ परिवार रे । चा०।। श्री आदीसर राजियउ रे,
श्री शत्रुञ्ज गिरि सिणगार रे। समयसुन्दर इम वीनवह रे,
हुज्यो मन वंछित दातार रे । चाई। इति श्री शत्रु जय आदिनाथ भास ॥१॥
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