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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
अष्टापदमण्डनशान्तिनाथगीतम्
राग-मालवी गउड़उ सो जिनवर प्रियु कहउ मोहि कत री। रावण वेणु बजावत मधुरी,
नृत्य करत मंदोवरी पूछत री ।१। सो०। शरणागत राख्यउ पारेवउ,
पूरव भव अइसउ चरित सुणत री। जाकउ जनम भयउ सब जग मंइ,
शांति भई दुख दूरि गमत री ।२।सो। पांचमउ चक्रवर्ती सोलमउ जिनपति,
साधत रो पट खंड भरत री। चउसठि सहस अंतेउरि मनोहरी,
तृण ज्युतजी करि संयम गहत री।३। सो०। तब लंकेश हसी प्रिया कर ग्रही,
देखावति अहो इनु न जानत री । इया सो जिन मृग लांछन शोभित,
तीन भुवन जाकी प्राण मानत री।४।सो०। ऋति तांति नसा सांधत री,
रावण तीर्थकर गोत्र बांधत री। अष्टापद गिरि शांति जिनेसर,
समयसुन्दर पाय प्रणमत री।श सो।
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