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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ( ६१ ) सखी नमिस्यां हे, सखि नमिस्यां नेमि जिणंद,
पगि पगि हे, आपे पगि पगि पाप पखालस्यां ॥३॥ सखि आबू हे, सखि आबू अचलगढ आवि,
चौमुख' हे, आपे चौमुख मूरति चरचस्यां । सखि प्रणमी हे, सखि प्रणमी हे विमल प्रासाद,
घरमइ हे, आपे धरमइ हे निज धन खरचस्यां ॥४॥ सखि जास्यां हे, सखि जास्यां हे राणकपुत्र जात्र,
देहरउ हे, आपे देहरउ देखी आणंदस्यां । सखि नमिस्यां हे, सखि नमिस्यां आदि जिणंद,
दोहग है, आपे दोहग दुख निकंदस्यां ॥५॥ सखि फलवधि हे, सखि फलवधि हे जेसलमेरि,
जास्यां हे, आपे जास्यां जात्रा - करण भणी । सखि लहिस्यां हे, सखि लहिस्यां हे लील विलास, बोलइ हे, मइ बोलइ हे समयसुन्दर गणी ॥६॥
____ इति श्री तीरथ भास। ..
अष्टापद तीर्थ भास मोरू मन अष्टापद सु मोह्य,
फटित रतन अभिराम मेरे लाल । भरतेसर जिहां भवन कराव्य उ,
कीधु उत्तम काम मेरे लाल । मो०।१। १ केसर हे, आपे केसर चंदन चरचस्यां
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