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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
विनय करी जिन प्रतिमा वांदियइ, सुन्दर सकल सरुपोजी। पूजइ प्रतिमा चउविह देवता, वलिय विद्याधर भूपो जी॥१५॥ जिन प्रतिमाबोली जिन सारखो, हितसुख मोक्ष निदानो जी। भवियण नइ भवसागर तारिवा, प्रवहण जेम प्रधानोजी॥१६॥ जीवाभिगम प्रमुख मांहि भाखियउ,ए सहु अरथ विचारोजी। सांभलतां भणतां सुख संपदा, हियडइ हरख अपारो जी॥१७॥
|| कलश ॥ इम सासता प्रासाद प्रतिमा संथुण्या जिणवर तणा,
चिहुं नाम जिनचंद तणे त्रिभुवन सकलचंद सुहामणा । वाचनाचारिज समयसुन्दर गुण भणइ अभिराम ए, त्रिहुं कालि त्रिकरण सुद्ध हुइज्यो सदा मुझपरणाम ए॥१८॥
तीर्थमाला बृहत्स्तवनम श्रीशत्रुजयशिखरे, मरुदेव स्वामिनीह गजचटिता। पुत्रनमस्कृति चलिता, सिद्धा बुद्धा नमस्तस्म्यै ।।१।। श्रीशत्रुज्जयशृङ्गार-कारिणे दुःखहारिणे । प्रलम्बतरबिम्बाय, अर्बुदस्वामिने नमः ॥२॥ श्रीमत्खरतरवसति-प्रौढप्रासादमूलबिम्बाय । श्रीशान्तिनाथजिनवर ! सुखकर! सततं नमस्तुभ्यम् ॥३॥ श्रीशत्रुञ्जयमण्डन ! मरुदेवाकुक्षिराजहंससम ! । प्रणमामि मूलनायक चरणं तब नाथ ! मम शरणम् ॥४॥
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