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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
( ५३ )
॥ ढाल ।।
त्रण सहस सउ एक नवाणुरे,
जिणवर प्रासाद वखाणु रे। बीसा सउ ए अंक गुणीयइ रे,
तीर्थंकर प्रतिमा सुणियइ रे ॥१०॥ त्रिण लाख सहस वलि आसी रे,
प्रतिमा आठसइ नइ अइसी रे । सिर वालइ सवि मेलिजइ,
त्रिभुवन प्रासाद नमिजइ रे ॥१०॥ आठ कोड़ि सतावन लक्खा रे,
दुय सत ब्यासी कय रक्खा रे। हिवइ प्रतिमा गान कहीजइ रे,
जिणवर नी आण वहीजइ रे ॥१२॥ पनर सई बड़तालीस कोड़ी रे,
अडवन लख अधिका जोड़ी रे । छत्रीस सहस असि कहियइ रे,
प्रतिमा सगली सरदहियइ रे ॥१३॥
॥ ढाल ।
जोइसवंतर प्रतिमा सासती, असंख्यात वलि जेहोजी। पाय कमल तेहना नित प्रणयियइ, सोवन वरण सुदेहोजी॥१४॥
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