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________________ ( ५२ ) . समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ॥ ढाल ॥ हवइ नवग्र वेकह पंचाणुत्तर सार, चेइहर त्रणसइ वीसा सुविचार । प्रत्येक प्रतिमा वीसा सउ तिहां जाणि, अठत्रीस सहस सत साठ साठिगुण खाणि ।४। नंदीसर बावन कुंडल रुचक वखाणि, चउ चउ चेईहर साठि सवे त्रिहुं ठाणि । एकसउ चउवीस गुणी प्रतिमाचिहुं नामि, च्यार सइच्यालीसा सात सहस प्रणमामि।। नंदीसर बिदसइ सोलस कुलगिरि तीस, . मेरु वणि अइसी दस कुरु गजदंते वीस। मानुषोत्तर पर्वति च्यार च्यार इषुकारि, अइसा अति सुन्दर वृक्षसकारि मझारि॥३॥ 1. ढाल ।। दिग्गज गिरि च्यालीस असिय द्रहे सुजगीस, __ कंचण गिरि वरइ ए, एक सहस धर ए ॥७॥ वृत्त दीरघ वेताढ्य, वीस सतरि सउ श्राद्य, सत्तरि महा नदी ए, पंच चूला सदी ए॥८॥ जंबू प्रमुख दस रुक्ख, इग्यारइ सत्तरि सुक्ख, कुंड त्रण सइ असी ए, वीस जमग वसी ए |६| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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