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समयसुन्दरकृतिकुसुमाललि
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जन्म जरादिक दुख थी बीहतउ, हूँ भाव्यउ तुम्ह पासिजी। मुझ ऊपरि प्रभु महिर करी नइ, मापउ निरभय बास जी।भी। पूरव पुण्य संजोगइ पाम्यउ, तू त्रिभुवन नउ नाह जी। एक वार मुझ नयण निहालउ, टालउ भव दुह दाह जी ।४ श्री०। वीनतड़ी प्रभु सफल करेज्यो, श्री जुगमंधर देव जी। समयसुन्दर कर जोड़ी मांगइ, भव भवि तुम्ह पय सेव जी।५ भी।
इति श्रीयुगमंधरस्वामिगीतम् सं० १३ ॥ शाइवतजिनचैत्यप्रतिमाबृहत्स्तवनम् रिषभानन बधमान, चन्द्रानन जिन,
वारिषेण नामइ जिणा ए। तेह तणा प्रासाद, त्रिभुवनि सासतां,
प्रणमु बिंब सोहामणा ए ॥१॥ चेइहर सगकोड़ि लाख बहुत्तरि,
__चेइ चेइ प्रतिमा सउ असी ए । तेरसइ नव्यासी कोडि साठि लाख सुदर,
___ भवनपती मांहि मनि वसी ए ॥२॥ बार देवलोक प्रासाद चउरासी लख,
___ सहस छन्नू नइ सातसइ ए । एक सउ असी गुण बिंब बावन सउ कोड़ि,
चउराणु लख सहस छइ ए॥३॥
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