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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि (४६ ) धन ते गाम नयर पुर मंदिर, जिहां विहरइ जिनराय रे। विहरमाण सीमंधर स्वामी, सुरनर सेवइ पाय रेशस्वा०। तुम दरसण बिण चत्रगति मांहि, हूँभम्यउ अनंतीवाररे। हवइ प्रभुतोरइ सरणे आव्यउ, आवागमण निवारि रे।६।स्वा०। सेवक नी प्रभु सार करी नइ, सारउ वंछित काज रे। समयसुन्दर कर जोड़ीवीनवइ,आपउ अविचल राजरे।७।स्वा०।
राग-गउड़ी पूरव माह विदेह रे, पुखलावतो विजय जेह रे। पुंडरीकणी पुरी नामि रे, विहरइ सीमंधर स्वामि रे ॥१॥ वृषभ लांछन सुखकार रे, श्री श्रेयांस मल्हार रे। सत्यकी उरि अवतार रे, रुकमणि नउ भरतार रे ॥२॥ पांच सइ धनुष नी काय रे, सेवइ सुरनर पाय रे । सोवन वरण शरीर रे, सायर जेम गंभीर रे ॥३॥ कनक कमल पद ठावइ रे, सुर किन्नर गुण गावइ रे। भवियण जण नइ साधारइ रे, भवजल पार उतारइ रे ॥४॥ धन धन ते पुरगाम रे, विहरइ सीमंधर स्वामि रे। धन धन ते नर नारी रे, भगति करइ प्रभु सारी रे ॥५॥ श्री सीमंधर स्वामी रे, चरण नमु सिर नामी रे। समयसुन्दर गुण गावइ रे, मन वंछित फल पावइ रे ॥६॥ * पाठान्तर-सांभलइ देसणा सार रे, हियड़इ हरख अपार रे।
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