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________________ ( ४८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि चंदालाइ समयसुन्दर कहे एम चंदा, चंदालाइ एकरसउ सुपनंतर साहिब आइये रे लो | ३ चं० । सीमंधर जिन स्तवन सीमंधर जिन सांभलउ, वीनति करू' कर जोड़ । तूं समरथ त्रिभुवन धणी, मुने भव संकट थी छोड़ | १ | सी० । तुम मृ' बिचि अंतर घणो, किम करू तोरी सेव । पांख बिना किउं मिलूं, पण दिल में तूं एक देव | २ | सी० । जिम चकोर मन चंद्रमा, तिम तूं मोरे चित | सयमसुन्दर कहइ ते खरी, जे परमेसर सु प्रीत | ३ | सो १ | सीमंधर जिन गीतम् राग - मारुणी स्वामि तारि नइ रे मुझ परम दयाल, सीमंधर भगवंत रे । सरणागत सेवक जन वच्छल, श्री जिनवर जयवंत रे | १ | स्वा०| पुख लावती विजय प्रभु विहरह, महाविदेह मकारि रे | हूँ दूरि थकां प्रभु तोरी, सेवा करु किम सार रे | २ | स्वा० । हे है देव काय नवि दीधी, पांखड़ली मुझ दोय रे । जिम हूँ जइ नइ जगगुरु वांदू, हीयड़लु हरखित होय रे । ३ | स्वा०| समवसरण सिंहासण स्वामी, बइठा करइ वखाण रे । धन ते सुर किन्नर विद्याधर, वाणी सुखइ सुविहाण रे | ४ | स्वा० | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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